वन पारिस्थितिकी एवं जलवायु परिवर्तन प्रभाग
प्रभाग जैवविविधता के संरक्षण, पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन मुद्दों जो कि कार्यसंगत हैं और पारितंत्र एवं पर्यावरण के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के निहितार्थों जैसे वृहद मुद्दों पर केन्द्रित परियोजनाएं संचालित कर रहा है। परियोजनाएं चयनित वनों में मुख्य रूप से वृक्षों की आवृत्ति, घनत्व एवं वृद्धि प्राचलों, मुख्य प्रकाष्ठ वृक्ष प्रजातियों के नवांकुरों की संख्या, सभी ऋतुओं में शाकों एवं उनके पुनर्जनन की स्थिति पर आंकडे़ं दर्ज करने का कार्य करती हैं। यह संदर्भांकित क्षेत्र में मुख्य रूप से वर्षों के बेंचमार्क पुनर्जनन, कार्बन पृथक्करण तथा उत्पादकता पर एक अभिप्राय प्रकट करता है। प्रभाग के पास अनेकों संकल्पित एवं विकसित कृषिवानिकी प्रणालियां हैं, जिनमें हमेशा वृक्ष एवं फसल संयोजनों के आधार पर 1.78 से 3.5 की रेंज तक उत्कृष्ट भूमि समकक्ष अनुपात (एल.ई.आर.अनुपात) उपलब्ध हैं। यह आकलन किया गया कि बुवाई की गई फसलों की स्थानीय उत्पादकता की उपज की तुलना में एक एकड़ 1.78 एकड़ के समकक्ष या यहां तक कि 3.5 एकड़ तक भी है। इससे मार्गदर्शन प्राप्त कर, मछलियों एवं वृक्षों के साथ धान की बैच प्रणाली पर गहन जैविक कृषि प्रणाली के रूप में एक पथप्रदर्शी परियोजना को विकसित किया गया। दुर्लभ, संकटापन्न एवं संकटस्थ प्रजातियों को एक घटक के रूप में लेकर कृषि वानिकी माॅडल के विकास पर भी एक परियोजना को क्रियान्वित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वन सामान्यतः अतिसंवेदनशील तंत्र हैं तथा विभिन्न कारणों एवं कारकों जैसे नाशी-कीट व व्याधियों की महामारी, खरपतवार तथा आक्रमक प्रजातियों, वनाग्नि तथा मानवजनित गतिविधियों से इन्हें काफी क्षति होती है। यह ज्ञात तथ्य है कि संक्रमण द्वारा उत्पादकता में काफी कमी आती है। हालांकि, नाशी-कीटों से रक्षण के लिए पारंपरिक विधियों का उपयोजन चुनौतियों पूर्ण है। इसको ध्यान में रखते हुए, संस्थान आई.पी.डी.एम. विधि जिसमें पादप आधारित कीटनाशी तथा जैविक नियंत्रण उपाय सम्मिलित हैं, पर तीन केन्द्रित परियोजनाएं क्रियान्वित कर रहा है।
आनुवंशिकी एवं वृक्ष सुधार प्रभाग
प्रभाग पूर्वी घाट की संकटापन्न प्रजातियों जैसे टेरोकार्पस सैण्टालिनस, सिजियम क्यूमिनी, ग्लोरिओसा सुपर्बा, एण्ड्रोग्राफिलिस बेडोईमि, राओवोल्फा सर्पेण्टिना इत्यादि के वन आनुवंशिक संसाधन संरक्षण, प्रजाति पुनप्र्राप्ति कार्यक्रम के मुद्दों को समेकित करने के लिए अनुसंधान निष्पादित करता है तथा सामान्य रूप से हमारे वनों की अल्प उत्पादकता को ध्यान में रखकर वृहद चयन एवं चयनित प्रजनन जो कि आवश्यक है के माध्यम से महत्वपूर्ण तथा वाणिज्यिक प्रजातियों की उत्पादकता संवृद्धि में भी सम्मिलित है।
राष्ट्रीय स्तर पर एक नवीन पहल के रूप में एन.एफ.आर.पी. के अनुरूप ‘रेड सैण्डर्स (टेरोकार्पस सैण्टालिनस एल.एफ.) का संरक्षण तथा उत्पादकता सुधार‘ पर छह अन्य अनुसंधान संस्थानों की सहभागिता से एक अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना तैयार की गई है। इसके अतिरिक्त, प्रभाग द्वारा सक्रिय घटकों के संदर्भ में औषधीय पादपों की उत्पादकता पर भी अनुसंधान क्रियान्वित किए जा रहे हैं।
प्राकृतिक बायोस्टीम्यूलैण्ट न केवल कोशिका विभाजन के द्वारा वृद्धि में बढ़ोतरी करते हैं अपितु जैव-रसायनिक प्राचलों को भी प्रभावित करते हैं।
एक परियोजना जो कि वृद्धि तथा जैव-रसायनिक घटक संवृद्धि, मुख्य रूप से राओफोलिया सर्पेण्टिना का रेसपेरिन घटक की क्षमता उपयोजन को प्राकृतिक बायोस्टिम्यूलैण्ट को वृद्धि नियंत्रक के रूप में संबोधित करती है।
विस्तार प्रभाग:
वन जैवविविधता संस्थान, हैदराबाद भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्, देहरादून के तत्वाधान के अंतर्गत परिषद् के अधिदेश एवं लक्ष्य ‘‘अनुसंधान, शिक्षा एवं विस्तार द्वारा संवहनीय आधार पर वनों से संबंधित समस्याओं के निपटान, तियों, वनों एवं पर्यावरण के मध्य पारस्परिक क्रिया से उत्पन्न होने वाले संयोजनों को प्रोन्नत करने के लिए ज्ञान, प्रौद्योगिकीयों एवं समाधानों को सृजित, परिरक्षित, प्रसारित एवं उन्नत करना‘‘ की पूर्ति के लिए अनुसंधान एवं विस्तार कार्य निष्पादित कर रहा है।"
शिक्षा:
- वन जैवविविधता संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न पी.एचडी. अध्येताओं को मार्गदर्शित किया जाता है।
- विश्व बैंक सहायतार्थ ए.पी.सी.एफ.एम. परियोजना (चरण -2) के अंतर्गत राज्य वन विभाग को अनुसंधान एवं विकास के क्रियान्वयन के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करना।